आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Saturday, May 3, 2014

मधुर क्षण (1992)

मधुर क्षण अब वे कहाँ हैं?

जब किसी के थरथराते होठ पहली बार चूमे,
जब किसी को बाहु में भर पाँव पा उन्माद झूमे,
जब किसी कोमल लता ने वक्ष पर सिहरन जगाई,
और निज सौरभ - सुवासित रूप की मदिरा पिलाई,
जब किन्हीं अनुरक्त नयनों में लिखा सुख - बोध देखा,
पूर्ण यौवन - मत्त तन से प्रणय का अनुरोध देखा,

मधुर क्षण अब वे कहाँ हैं?

जब हिमाच्छादित शिखर पर ऊष्णता - आभास बनकर,
छा गया कोई उषा - सा ज्योति का अंगार तनकर,
शीश पर वन - फूल साजे जब चला था साथ कोई,
सघन वन की वीथिका में थाम बैठा हाथ कोई,
चीड़ - सा चुभता हुआ सौन्दर्य था मुझको समर्पित,
दारु - द्रुम - सा रूप - मद मेरे लिए था भूमि अवनित,

मधुर क्षण अब वे कहाँ हैं?

जब नदी के तीर निर्मल प्रेम - रस पी छक गया था,
साथ लहरों में किसी संग खेलकर जब थक गया था,
जब किसी के चंद्रमुख ने ज्योत्सना भर दी नयन में,
अमृत - सा मुझको पिलाया जब सुहाने अंजुमन ने,
जब किसी अहसास ने, विश्वास ने मुझको गहा था,
'प्राणप्रिय', 'सौभाग्य' और 'उमंग' यों मुझको कहा था,

मधुर क्षण अब वे कहाँ हैं?

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