आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Saturday, May 3, 2014

बिस्तर में सांप (2007)

बिस्तर में लेटते ही मुझे लगा
जैसे कहीं कोई सांप घुसा है उसमें
मैं घबराया,
गद्दा पलटा, चादर झाड़ी,
तकिये उलटे, कम्बल खँगाला,
जब सांप कहीं न मिला उसमें
तब फिर से लेट तो गया उसमें
पर सांप की चिन्ता में नींद लौटकर नहीं आई
बिस्तर जैसे इस देश की व्यवस्था था
सांप भ्रष्टाचार था और
नींद आम आदमी का सुख - चैन थी

थोड़ी ही देर में मुझे लगा कि
सांप अभी भी है बिस्तर में
शायद मेरे झाड़ने पर
सरक गया हो किसी अनदेखे कोने में
मैंने उठकर तकियों के कवर फाड़ डाले
गद्दे को डंडे से पीटा
चादर, कम्बल सब मसलकर झाड़े
यह भी निश्चय कर डाला कि
अब फिर दिखा सांप तो
बिना बिस्तर बिछाए ही लेटूँगा
निश्चिन्त हुआ कि अब बच नहीं पाएगा सांप
लेकिन न सांप पकड़ में आया
और न नींद ही वापस लौटी
वह आम आदमी के विश्वास की तरह
दूर खड़ी घबराती रही और
बार - बार खण्डित जनादेश के माध्यम से
हमें अपनी कठिनाइयों का अहसास कराती रही

मुझे लगा कि बिस्तर में सांप शायद एकाकार हो गया था
उसे उसमें से अलग करने के सारे उपाय नाकाफी थे
इसीलिए अबकी बार मैंने बिस्तर बदलने की ही सोची
मैंने फिकवा दिए वे तकिए, चादर व कम्बल बाहर
खूब जाँच - परखकर एक नया बिस्तर लगाया
फिर संतुष्ट होकर लेट गया उसमें
लेकिन इस अहसास ने मेरा पीछा न छोड़ा कि
सांप वहीं का वहीं है उस बिस्तर में
मुझे लगा कि बाज़ार में उपलब्ध सारे बिस्तरों में ही सांप हैं
शायद इसीलिए भरे बाज़ार लुट रहा आम आदमी
कभी किसी बिस्तर पर नहीं सोता

अन्त में मैंने तय कर लिया कि
सांप से छुटकारा पाना है तो
बिना बिस्तर वाली किसी खाट पर लेटना ही ठीक रहेगा
मैं बिस्तर हटाकर खटेटी खाट पर ही लेट गया
सांप का डर नहीं था अब
कितु नींद फिर भी नहीं आई
चारों तरफ बिस्तर पर सोए हुए लोगों के खर्राटे
सांप की फुफकार की तरह
गूँज रहे थे दिमाग में
और पीठ में चुभ रही थी खटेटी खाट निरन्तर
पसलियों में दर्द होने लगा था रह - रहकर
मुझे लगा कि धीरे - धीरे मुझे
आम आदमी की पीड़ा का अहसास होने लगा था

मैं खाट से उठकर
घर में, फिर बाहर,
और  फिर धीरे - धीरे देश के कस्बों और शहरों में
अपनी पीड़ा का अहसास बाँटते हुए टहलने लगा
नींद की तलाश में मैं लोगों के साथ मिलकर
इन सांपों को मार भगाने के उपाय करने में जुट गया
हम सब जानते थे कि अब केवल बिस्तर बदलने भर से
नींद वापस नहीं आने वाली थी
अपनी खोई हुई नींद वापस पाने के लिए
इन सांपमय बिस्तरों को जलाकर भस्म कर देना
अब हमारी मजबूरी बन चुका था
आम आदमी को सुख की नींद लौटाने वाले
सांपों से मुक्त बिस्तरों को सजाने के लिए
देश में आज़ादी की लड़ाई जैसी एक नई अलख जगाना

अब फिर से बेहद जरूरी लग रहा था।

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