आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, May 4, 2014

बौनों ने आकाश छुआ है (2009)

नई सुबह है, मस्त हवा है,
गुणा-भाग सब पस्त हुआ है,
बदली - बदली जनता सारी
बदला - सा हर एक युवा है।

परिवर्तन की बाट जोहती
दुनिया सारी अब लगती है,
सोच नई है, जोश नया है,
बदला - सा अंदाज़े - बयां है।

गढ़ने को नूतन परिभाषा
धर्म - कर्म, नैतिकता सबकी,
बूढ़ा पीपल कुचियाया है
डाल - डाल प्रस्फोट हुआ है।

घर में कीचड़, बाहर कीचड़,
कीचड़ मलने की आदत से
छुटकारा पाने को व्याकुल
थोथेपन का दुर्ग ढहा है।

अब स्वीकार नहीं है विघटन
भाव - विभेद व्यर्थ का सारा,
कठिन काल में अभिनव - पथ का
अर्थ - बोध आसान हुआ है।

ग्रहण मिटा है, नव - किरणों की
आभा में उम्मीद जगी है,
पराभूत करने पीड़न को

बौनों ने आकाश छुआ है। 

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