आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, May 4, 2014

लक्ष्मण - रेखाएँ (2013)

जो हमेशा अपनी हद में रहता है
वह प्रायः सुरक्षित बना रहता है
लेकिन इतिहास का पन्ना नहीं बन पाता कभी भी
जो हदें पार करने को तत्पर रहता है
उसी के लिए खींची जाती हैं लक्ष्मण - रेखाएँ
जो वर्जना को दरकिनार कर लाँघता है ये रेखाएँ
वही पाता है जगह प्रायः इतिहास के पन्नों पर।

इस देश में ऐसे महापुरुषों की कमी नहीं
जो नारियों को मानकर अबला
रोज़ खींचते हैं उनके चारों ओर लक्ष्मण - रेखाएँ
लेकिन फिर भी कुछ सीताएँ हैं कि मानती ही नहीं
वे युगों पुरानी त्रासदी को भूल
किसी भी वेश में आए रावण की परवाह किए बिना
लाँघती ही रहती हैं निर्भयता से
इन पुरुष-खचित इन रेखाओं को
और  दर्ज़ होती रहती हैं इतिहास के पन्नों में 
मीराबाई, अहिल्याबाई, लक्ष्मीबाई
या फिर यूसुफजाई मलाला और दामिनी (निर्भया) बनकर।

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