आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Monday, June 2, 2014

मिठाई की दूकान

जीवन को मिठास से भरने के लिए
निरन्तर हल्दीराम व अगरवाल स्वीट्स के चक्कर काटने वाले
स्वास्थ्य और साफ - सफाई के प्रति सर्वदा सचेत
देश में वैज्ञानिक सोच का विस्तार करने के प्रति पूरी तरह से समर्पित
संगठित खुदरा क्षेत्र की चमचमाती दूकानों पर
दिनो - दिन मुग्ध होते जा रहे
मेरे एक दिल्ली - वासी मित्र
न जाने किस अनुभव - सम्पत्ति को खोजने
एक दिन शहर से दूर स्थित मेरे गाँव आए

थोड़ी देर दरवाज़े पर पड़ी चारपाई की लोच में
लंबे अर्से से कुर्सी, मेज़ व स्लीपवेल के गद्दों से
शरीर को मिलती रही संचित अकड़ को ढीला कर
वे मेरे साथ पास के कस्बे का बाज़ार घूमने निकले
प्राकृत रंगों, लाउडस्पीकरों के कानफोड़ू संगीत और
ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए मचाए जा रहे
ऊँची आवाज़ों के शोर में डूबा बाज़ार उन्हें खूब भाया

सहसा वे एक जगह ठिठककर रुक गए
यह उस बाज़ार की इकलौती मिठाई की दूकान थी
दूकान के सामने ग्राहकों का रेला था
वहाँ का दृश्य अलबेला था
कोई खिलाने में जुटा था बाल-बच्चों को,
कोई अपनी शर्मीली नव - व्याहिता को,
कोई मिठाई खाने में जुटा था निपट अकेला ही

हमने देखा कि दूकान में
एक बड़ी - सी थाली में सजी हैं
जलते हुए अंगारों जैसी रंगत वाली
गोल - गोल उमठी हुई जलेबियाँ
जिनकी देह में भरे रस के
मधुर व उत्तेजक होने का भरोसा दिला रहे हैं
उन पर रस को चूसने में मग्न किन्तु सतर्क बैठे
दर्ज़नों तीखे डंक वाले लाल - लाल बर्रौए

उसी के बगल के एक थाल में रखा है
चीनी की सफेदी ओढ़े शकरपारों का ढेर
जिन पर निरन्तर टहल रही है
उनके परम स्वादिष्ट होने का अहसास दिलाती
सामान्य से बड़े आकार वाले काले चींटों की एक टोली

साथ ही लकड़ी की एक चौकी पर
पीतल के बड़े-से थाल में सजा है
बूंदी के स्वर्णिम लड्डओं का ढेर
जिन पर उड़ - उड़कर बैठ रही हैं अनगिनत पीली बर्रे
रंगों की ऐक्यता के कारण नज़र नहीं आतीं प्रथमदृष्ट्या
लेकिन गौर से देखने पर दिख ही जाती हैं वे
मुखाग्र से लड्डुओं के चेहरे पर
प्रगाढ़ चुम्बन लेने में तल्लीन हो
थिरकते पंखों से उनके स्वाद के आनन्द का प्रमाण देतीं

दूकान के अग्र - भाग में
कांसे की एक बड़ी ट्रे में परत दर परत सजायी गई हैं
चाँदी जैसी आभा से युक्त दूध की बर्फियाँ
और बगल वाले कड़ाह की चासनी में तैर रहे हैं
जिव्हा पर रखते ही
मुँह को मिठास से भर देने का आश्वासन देने वाले
कत्थई रंग वाले गोलाकार गुलाबजामुन
इन दोनों के ही रस के आकर्षण से
बचते दिख रहे हैं पंखधारी
इन पर एकाधिकार दिख रहा है
आसक्ति में डूबकर मरने से न डरने वाली चींटियों का
जिनकी हज़ारों मृत देहें दिख रही हैं तैरती
उस मीठे रसागार में
इस बात का प्रमाण देतीं कि
मिठास में डूबकर मरने का आनन्द बेजोड़ होता है
इस आँसुओं से लबालब भरे खारे भवसागर में

सड़क से गुजरने वाले वाहनों की तीव्र गति से
चलायमान होती हवा में उड़ - उड़कर 
पूरे दिन इन मिठाइयों पर पड़ती हुई धूल
ग्राहकों को यह अहसास दिलाती रहती है कि
जैसे चन्दन से इनका अभिषेक होता है नित्य
और इस बारे में किसी भी शंका को
निर्मूल कर देने के लिए ही
दूकान के एक कोने में स्थापित
लाभ के देवता की मूर्ति के सामने
सारे दिन सुलगाई जाती हैं
चन्दन की तेज गंध वाली अगरबत्तियाँ भी

दुकान के पिछले हिस्से में अपनी गद्दी पर जमा हलवाई
ग्राहकों की माँगें सुनता और पैसे सँभालता है
उसका जवान हो रहा सुकुमार बेटा
बर्रौओं और चीटों तथा ग्रामीण ग्राहकों की मूँछों से डरे बिना
मिठाइयों और पैसों का लेन - देन निबटाता है
पीछे की तरफ एक भट्टी की आँच में
अपने रूप को गलाती हुई
हलवाइन कोई मिष्ठान्न पकाने में व्यस्त है
हमें लगा कि दूकान के अन्दर से लेकर बाहर तक
वहाँ मौजूद हर एक शख्स मिठाइयों की सुगंध और स्वाद में मस्त है

मैंने सोचा कि यह सब देखकर मेरे मित्र अभी बोलेंगे
देखो, यही है इक्कीसवीं सदी के हिन्दुस्तान का बदनुमा चेहरा,
यही है गंदगी, यही है पिछड़ापन,
यही है आज भी इस देश के सारी महामारियों का गढ़ होने का कारण
यही है दिल्ली में बैठकर अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप
रची जाने वाली स्वास्थ्य - परिरक्षा की व्यवस्थाओं के क्रियान्वयन का सच
मुझे लगा कि अभी वे जमकर कोसेंगे उस हलवाई को
वहाँ जुटे उन गँवई ग्राहकों की अज्ञानता को
इलाके में कभी न दिखने वाले खाद्य सुरक्षा निरीक्षक को
प्रदेश व केन्द्र की सरकारों के निकम्मेपन को
और फिर शायद मुझे भी ताना देंगे कि देख!
जहाँ से तेरे जैसे पढ़े - लिखे लोग करते रहेंगे पलायन
वहाँ का हाल तो ऐसा होना ही है

लेकिन यह क्या, मेरी सारी सोचों को झूठा साबित करते हुए
वे हलवाई को जलेबियों का ऑर्डर देते हुए मेरी ओर मुखातिब हुए,
"यार, इस दूकान के सामने खड़े होकर
बर्रौओं और चींटियों तक को प्रिय
इन लज़ीज़ मिठाइयों को खाने का जो मज़ा है न
वह शहर की चमचमाती दूकानों के बन्द केसों में सजी
निर्जीव मिठाइयों में कहाँ!
इनमें जो विषाणुओं का दूषण है,
वही तो इन गाँव वालों की रोग - प्रतिरोधी शक्ति का स्रोत है
इन पर छाई हुई यह जो जीवंतता है
उसी में जीने का असली स्वाद और आनन्द छिपा है
इन पर आसक्त चींटे और बर्रौए उत्प्रेरित कर रहे हैं मुझे
इन्हें जी भरकर चखने के लिए
उनकी तृप्ति का अहसास मिटाए दे रहा है
मेरे मन में भरी इनकी विषाक्तता से जुड़ी शंकाएँ
अब जो संक्रमण होना हो, सो हो,
फिलहाल तो मैं संक्रमित हो चुका हूँ
इन मिठाइयों का स्वाद चखने में जुटे
ग्रामीण ग्राहकों के आनन्द के अतिरेक से।"

"यदि मजबूर कर दिया गया इस पुश्तैनी हलवाई को
शीशे के केसों में बंद मिठाइयाँ ही बेंचने के लिए
तो, अव्वल तो वह ऐसा करने की असमर्थता में
इस धंधे को छोड़कर अपनी दूकान को ही बेंच देगा
शहर के किसी नामी - गरामी मिठाई वाले के नाम
या फिर बनकर फ्रैन्चाइज़ी किसी देशव्यापी मिष्ठान्न - श्रंखला का
वह भी बेंचना शुरू कर देगा स्वास्थ्य - सुरक्षा की गारंटी देती
दो - तीन गुना दामों वाली रंग - बिरंगी डिब्बाबंद मिठाइयाँ
भला तब गाँव के ये हुलसते जोड़े और खिलखिलाते बच्चे
कहाँ पाएँगे मिठाइयों का यह खालिश देशी स्वाद और आनन्द!
इसलिए ऐसा कुछ होने से पहले ही मित्र!
आज तक किसी ऐसे आनन्द से वंचित रहे मेरे शहरी मन को
जी भरकर चख लेने दो बाज़ार का यह देशज स्वाद
पता नहीं अगली बार यहाँ आने पर ले जाओ तुम मुझे
तब तक इस बाज़ार पर कब्ज़ा जमा चुके किसी सुपर मार्केट में!"

उस शाम हम छककर मिठाइयाँ खाने के बाद ही घर लौटे
सुबह उठने पर मैं तो बिल्कुल दुरुस्त था
लेकिन मेरे मित्र पेट की ऐंठन से परेशान थे
हम उनके कष्ट के निवारण के लिए इलाके में उपलब्ध
एकमात्र सरकारी अस्पताल में जाने की तैयारी जरूर कर रहे थे
लेकिन कल कस्बे की उस दूकान पर
मिठाई खाने के नैसर्गिक आनन्द के बारे में
मित्र के मन में बनी धारणा में कोई भी बदलाव नहीं हुआ था
उन्हें पता था कि उनका यह कष्ट आसानी से दूर हो जाएगा
और इन मिठाइयाँ को फिर से खाने पर बार - बार नहीं सताएगा।

मैंने सोचा, काश!
इन दूकानों पर नीति - नियंताओं की टेढ़ी नज़र पड़ने के पहले
शहर से आए अपने मित्र की ही भाँति
मैं देश के स्वास्थ्य व वाणिज्य जैसे विभागों के
मंत्रियों व आला अधिकारियों को भी
एक बार अपने कस्बे की इस दूकान पर लाकर
गाँव वालों के साथ खड़ाकर मिठाई खिला पाता
तो शायद मिठाइयों के शौकीन मस्तमौला गाँव वालों
और कस्बों के ऐसे छुटभैये हलवाइयों का भविष्य सुरक्षित हो जाता!

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