आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, July 20, 2014

प्रतीक

हम जीते हैं
प्रतीकों के सहारे
हम मरते हैं
बस अपने प्रतीकों की खातिर ही

हमारे धर्म, जाति, कुल व परंपरा के प्रतीक
सबसे महत्वपूर्ण होते हैं
वे न कभी बूढ़े होते हैं
न कभी मरते ही हैं

हमारे संघर्ष के प्रतीक नहीं बनते
किसी मनुष्य के आँसू
उसकी भूख, पीड़ा, शोषण और उत्पीड़न
हमारे प्रतीक बने रहते हैं हमेशा अंगद के पांव

जो प्रतीक सदा ही छलते आए हैं
बालि, भीष्म, कर्ण और एकलव्यों को
उन प्रतीकों को भेज देना चाहता हूँ मैं
सच का सामना करने
भारत के अगले चंद्रयान पर

जो प्रतीक सक्षम हों
दुनिया के सबसे कमजोर इन्सान के भीतर
विश्व के सबसे ताक़तवर आदमी से
आँखें मिलाने का हौंसला भरने में
उन्हीं के सहारे लिखना चाहता हूँ मैं
अब अपनी एक अंतिम कविता।

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