आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Sunday, August 31, 2014

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (आचार्य के जन्म की 150 वीं वर्षगांठ पर उन्हें याद करते हुए)

मैंने ज़मीन पर पड़े
बीज के सूखे कवच को
नम होकर पिघलते देखा
और जान गया कि
मिट्टी में नमी का अंश कितना है

मैंने ज़मीन से तनकर उठते हुए
अंकुर का निरालापन देखा
और समझ गया कि
उसे कितनी उर्वर धरती का सहारा मिला है

मैंने भाषा की कोख में
एक नए शब्द का भ्रूण पलते देखा
और पहचान गया कि
उसका जीनोम किस कवि के वंश से संबद्ध है

मैंने अपने समय की भाषा के मूल में जाना चाहा
मैंने आईने पर वर्षों से जमा होती रही धूल को
रगड़कर साफ़ किया तो पाया कि
उसमें से आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी का
मुस्कराता हुआ चेहरा मुझे निहार रहा था।

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