आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, October 12, 2014

के. सच्चिदानन्दन की मलयालम कविता - तीक्ष्ण (अनुवाद)

(कवि, अनुवादक आलोचक श्री के सच्चिदानन्दन अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे हैं तथा एक लम्बे समय तक साहित्य अकादमी से जुड़े रहे हैं। उनकी लगभग दो दर्ज़न कविता - संग्रह, 16 अनूदित काव्य - संग्रह एवं नाटक व साहित्य से जुड़ी अन्य तमाम कृतियाँ हैं। उन्होंने अनेक प्रतिष्ठित विदेशी कवियों की रचनाओं से हमें मलयालम व अंग्रेज़ी के माध्यम से परिचित कराया है। उनकी अनेक कविताओं के अनुवाद के संग्रह विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में छप चुके हैं। श्री सच्चिदानन्दन आधुनिक मलयालम कविता के प्रणेता एवं उसके एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। यहाँ प्रस्तुत है, उनकी एक हालिया कविता तीक्ष्णमका अनुवाद)

चाभी भूलकर बच्चा बने रहो
कान पर गुड़हल का फूल खोंसो
नाले में नहाकर खजूर खाओ
अश्वों को बेले के फूलों से सजाओ
चाँदनी में लंगर डालकर सो जाओ
और माँ को याद करो!

बाघ की पीठ पर बैठकर प्रार्थना करो
दहकती आग पर चलना सीखो
नागराज का चुम्बन लो
सूर्य को थामकर भैरवी गाओ
समुद्र को लपेटकर धूम्रपान करो
और पिता को याद करो!

हृदय को ततैया का छत्ता बनाओ
अँधेरे के साथ शतरंज खेलो
प्रलय से श्रंगार करो
मर पर आग लगा
सोने से एक चाकू बनाओ
और प्रेमिका को याद करो!

अनिद्रा के पहाड़ पर चढ़ो
कोयले से दीवारों पर लिखो
खुद का कंधा थपथपाकर शेर को जगाओ
आने वाले कल की पीठ पर सवारी करो
शब्दों में शूल घुसेड़ो
और मित्र को याद करो!

पीपल के पेड़ को किला बना लो
सूली पर ख़ून से लिखी स्तुति पढ़ो
स्मृति के पाँवों पर तीर चलाओ
देह की केंचुल फेंककर पलायन करो
महाविष - कुंभ पीकर कर्ज़ चुकाओ
और शत्रु को याद करो!

पृथ्वी के द्वार पर पहरेदारी करो
दिशाओं की लगाम थामो
नदी को उठाकर गर्दन में सजा लो
वक्ष पर वन की हरियाली गोदो
शून्यता को धड़कनें दो
और ईश्वर को याद करो!

ईश्वर समय से परे नहीं,
समिधा, मछली, बादल की ही तरह,
मरने पर उसके द्वारा सृजित कुछ भी
उसके साथ नहीं होगा
आग में जलती एक खिड़की बन
वह पूरब की तरफ से थककर गिरेगा,
ज़हरीले धुंए की चीखों से भरे आशविट्ज़ में
या शिशुओं के रक़्त से रंजित
गाज़ा की रेतीली मिट्टी में;
हमारी भोजन की थाली में
नित्य आकर गिरने वाले
किसी निरपराधी के शव की भाँति
शिशुओं की सिकुड़ी हुई उँगलियों समेत!

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