आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, October 12, 2014

पवित्रन तीक्कुनि की मलयालम कविता - कोल्लप्पेडुम मुम्ब (मार दिए जाने से पहले) - अनुवाद

(भूख की कविता लिखने वाले 40 वर्षीय कवि पवित्रन तीक्कुनि का नाम आज केरल की नई पीढ़ी के सबसे लोक लोकप्रिय कवियों में लिया जाता है। उनके लगभग एक दर्ज़न कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और उन्हें अनेक सम्मान भी मिले हैं। लेकिन उन्हें गरीबी के दंश झेलते हुए ही अपना गुज़ारा करना पड़ रहा है। वे पहले पारम्परिक रूप से मछलियाँ बेचने का काम करते थे और आजकल ईंट-गारा ढोने का काम करके अपने परिवार को सँभालते हैं। यहाँ प्रस्तुत है, उनकी केरल के आज के हिंसा से भरे राजनीतिक माहौल से जुड़ी एक ताजा कविता ‘कोल्लप्पेडुम मुम्ब’ का अनुवाद)

उन्मूलनों की आँधियाँ चलाने वाले
उन्मादों का ज्वार जगाने वाले 
अमिट प्यास से भरे
हथियारों के देश से 
तुम्हारे लिए लिखता हूँ 
अज्ञात मित्र!

आनन्द में, खुशी में, शांति में
जी रहे तुमको,
निर्दोष लोगों व मनुष्य - प्रेमियों को
बेदर्दी से मार दिए जाने वाले देश में
मैं अच्छा हूँ,
यह लिखना मूर्खता है।

किसी भी क्षण मार दिया जा सकता हूँ
इस बात की संभावना है,
इस समय यही मेरा हाल है
कल भी एक आदमी काटकर सुला दिया गया
अच्छाइयों से भरा एक इन्सान
अभी भी उस चिता की लपटें बुझी नहीं हैं।

तुम्हारे देश में आने
उसे देखने की 
इच्छा प्रबल है
इन लाशों को पार कर
इस जमा हुए खून में तैर कर
कैसे आऊँगा?

अब जिन्हें मिटाया जा रहा है
वे शत्रु नहीं हैं
साथ में घूमे - फिरे, लेटे - बैठे
विश्वस्त लोग हैं
यहाँ चाँदनी, फूल, गलियाँ
सब अंधकार में डूबी हुई हैं।

माँ, पत्नी, बच्चे
किसी के भी सामने मार दिया जा सकता हूँ
अनन्त रोदन,
अंतहीन विलाप - यात्राएं
आज मैं, कल तूकी भाँति
गुजरती चली जा रही हैं।

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