आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Friday, December 26, 2014

हिमालय की चोटियाँ (11-11-2014, मसूरी)

हिमालय की चोटियाँ
दिन भर धूप में नंगी नहाती हैं
लेकिन तन की बर्फ़ पिघलने नहीं देतीं
बस शाम को शर्म से थोड़ा - सा लाल हो जाती हैं
और शनै: शनै: श्वेत - श्याम हो
छिप जाती हैं रात के अँधेरे में
अगली सुबह फिर से अपने शीश पर
स्वर्ण मुकुट धारण करने की आशा में

पहाड़ की चोटियाँ 
कभी - कभी चुपके से उतर आती हैं
धूप की पीली चूनर लपेट कर
मेरी आँखों की पुतलियों में
और ऐसे में मसूरी की सड़क पर खड़े - खड़े
मैं उड़कर पहुँच जाता हूँ परियों के देश में


परियों के देश में जाने के लिए 
अपलक ताकना पड़ता है 
हिमालय की बर्फ़ से ढँकी चोटियों को
किसी शांत वादी में
देवदारु के पेड़ की घनी छाया में बैठकर।

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