आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Friday, December 26, 2014

वक़्त की जरूरत (दिसम्बर, 2014)

शांतिप्रिय कबूतर
अपने दड़बों में बैठकर
मालिक के बिखेरे दाने 
चुगने में व्यस्त हैं

तोतों को मजा आ रहा है 
पिंजड़ों में ही बैठकर 
पालनहारों का प्रशस्तिगान करने में

कठफोड़वों, नीलकंठों, 
और ऐसे ही तमाम अन्य 
मेहनतकश पक्षियों के पास
समय नहीं है किसी भी टहनी पर बैठ
देर तक पेड़ से बतियाते हुए
उसकी उदासी का सबब पूछने का

बाग अब हवाले है
दिन भर चीलों, बाजों और कौओं 
तथा रात भर चमगादड़ों के
ऐसे में मैनाओं, कोयलों, गौरैयाओं
और भोलीभाली बुलबुलों तुम्हारी खैर नहीं


चलो, अब अपनी नस्ल बदलो! 
वक़्त की जरूरत को पहचानो 
और अपने पंजों व चोंचों की शक्ल को 
धारदार बनाना शुरू कर दो!

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