आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Monday, May 11, 2015

मृत्यु

मृत्यु, स्वागत है तुम्हारा
आना तो तुम्हें है ही
और आने का समय भी 
तुम्हें ही तय करना है
लेकिन यह ध्यान रखना
जब मैं लोगों के साथ 
ठठाकर हँस रहा होऊँगा
और तुम आओगी अचानक दबे पाँव
तो लोग अपनी हँसी छिन जाने से बहुत दुखी होंगे
और जब मेरी पीड़ा में डूबकर
लोग रो रहे होंगे मेरे साथ
तब एक पूर्वाभास देकर तुम्हारा आना
शायद उन्हें राहत देने वाला होगा


जो भी हो
तुम अपने हिसाब से ही तय करोगी
अपने आने का विकल्प
लेकिन जब भी आना मेरी मृत्यु!
मेरे शरीर की थोड़ी - सी खुशबू 
यहीं, मेरे आसपास की हवा में छोड़ जाना।

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